४.१४ – इति मां योऽभिजानाति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ४

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श्लोक

इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते ||

पद पदार्थ

इति – इस प्रकार
माम् – मुझे
य: – जो भी
अभिजानाति – अच्छी तरह जानता है
स: – वो
कर्मभि: – पाप ( जो कर्म योग करने मे बाधा हो )
न बध्यते – से बंधा नहीं होता ( यह निहित है कि वो इन सारे पापों से विमुक्त हो जाता है )

सरल अनुवाद

जो भी मुझे इस प्रकार से अच्छी तरह जानता है, वो पाप से बंधा नहीं होता ( जो कर्म योग करने मे बाधा हो ) ( यह निहित है कि वो इन सारे पापों से विमुक्त हो जाता है ) |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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