४.१५ – एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ४

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श्लोक

एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म पूर्वैरपि मुमुक्षुभि: |
कुरु कर्मैव तस्मात्त्वं पूर्वै: पूर्वतरं कृतम् ||

पद पदार्थ

एवं ज्ञात्वा – मुझे इस प्रकार जानकर ( और इन सारे पापों से विमुक्त होकर )
पूर्वै: मुमुक्षुभि: अपि – पूर्वज जो मुमुक्षु थे ( मोक्ष जिज्ञासु )
कर्म – पहले समझाया गया कर्म योग
कृतं – किया था
तस्मात् – इस प्रकार
त्वं – तुम भी ( मुझे अच्छी तरह से जानकर और इन सारे पापों से विमुक्त होकर )
पूर्वै: – सूर्य , मनु इत्यादि पूर्वज के तरह
कृतं – किया था
पूर्वतरं – प्राचीन
कर्म एव – केवल कर्म योग
कुरु – करो

सरल अनुवाद

मुझे इस प्रकार जानकर ( और इन सारे पापों से विमुक्त होकर ), पूर्वज जो मुमुक्षु थे ( मोक्ष जिज्ञासु ) पहले समझाए गए ढंग से, कर्म योग किया था | तुम भी ( मुझे अच्छी तरह से जानकर और इन सारे पापों से विमुक्त होकर ) केवल उस प्राचीन कर्म योग को करो जैसे सूर्य , मनु इत्यादि पूर्वज ने किया था |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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