४.१९ – यस्य सर्वे समारम्भा:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ४

<< अध्याय ४ श्लोक १८

श्लोक

यस्य सर्वे समारम्भा: कामसङ्कल्पवर्जिता: |
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहु: पण्डितं बुधा: ||

पद पदार्थ

यस्य – उस व्यक्ति के लिए ( जो मुमुक्षु है ( मोक्ष जिज्ञासु ) )
सर्वे समारम्भा: – नित्य ( दैनिक ) , नैमित्तिक ( सामयिक) और काम्य (विशेष लक्ष्य का इच्छुक ) कर्म करने का प्रयास
काम सङ्कल्प वर्जिता: – परिणाम और संकल्प ( देह को आत्मा समझने की भ्रम से जो अभिलाषा उत्पन्न होता है ) के कामना रहित ( आसक्ति )
तं पण्डितं – उस ज्ञानसंपन्न व्यक्ति के
ज्ञानाग्नि दग्ध कर्माणं – सारे कर्म ( पुण्य एवं पाप ) ज्ञान (ज्ञान जो कर्म योग का एक अंग है ) रूप अग्नि में भस्म हो जाते हैं
बुधा: – ज्ञानी
आहु: – कहते हैं

सरल अनुवाद

पंडित कहते हैं कि एक ज्ञानसंपन्न व्यक्ति ( जो मुमुक्षु है ) जो नित्य ( दैनिक ) , नैमित्तिक ( सामयिक) और काम्य कर्म (विशेष लक्ष्य का इच्छुक ) को परिणाम और संकल्प ( देह को आत्मा समझने की भ्रम से जो अभिलाषा उत्पन्न होता है ) के कामना रहित ( आसक्ति ) करने का प्रयास करता है , उसके सारे कर्म ( पुण्य एवं पाप ) ज्ञान (ज्ञान जो कर्म योग का एक अंग है ) रूप अग्नि में भस्म हो जाते हैं |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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