४.३ – स एवायं मया तेऽद्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ४

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श्लोक

स एवायं मया तेऽद्य योग: प्रोक्त: पुरातन:।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् ।।

पद पदार्थ

पुरातन: – प्राचीन
स एव अयं योग: – यह कर्म योग ( जिसे गुरुजन के उत्तरधिकारी के माध्यम से सुरक्षित रखा गया था )
मे – मेरे
भक्त: – भक्त
सखा – दोस्त
असि – होने
इति – के कारण
ते – तुम्हे ( जो कि प्रपन्न ( शरणागत ) हो )
अद्य – आज
मया – मेरे द्वारा
प्रोक्त: – विस्तार से सिखाया गया है
एतत – यह
उत्तमम रहस्यं हि – वेदांत सम्बन्धित गुप्त ज्ञान , जो श्रेष्ट है

सरल अनुवाद

तुम मेरे भक्त और दोस्त होने के कारण , इस प्राचीन कर्म योग, जो श्रेष्ट और वेदांत सम्बन्धित गुप्त ज्ञान है , तुम्हे आज मेरे द्वारा विस्तार से सिखाया गया है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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