४.३१ – नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ४

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श्लोक

नायं  लोकोऽस्त्ययज्ञस्य कुतोऽन्यः कुरुसत्तम ॥

पद पदार्थ

कुरु सत्तम – हे कुरु वंश के वंशजों में श्रेष्ठ!
अयज्ञस्य – जो नित्य/नैमित्तिक कर्म (दैनिक/विशिष्ट वैधिका गतिविधियों ) से रहित है
अयम लोक: न – सांसारिक लक्ष्य भी प्राप्त नहीं होते
अन्य: कुत: – वह मोक्ष को कैसे प्राप्त करेगा जो आध्यात्मिक क्षेत्र में प्राप्त होता है?

सरल अनुवाद

हे कुरुवंशजों में श्रेष्ठ! जो व्यक्ति नित्य/नैमित्तिक कर्म (दैनिक/विशिष्ट वैदिक गतिविधियों) से रहित है, उसके लिए सांसारिक लक्ष्य भी प्राप्त नहीं होते हैं; तो वह मोक्ष कैसे प्राप्त करेगा जो आध्यात्मिक क्षेत्र में प्राप्त होता है?

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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