४.६ – अजोऽपि सन् अव्ययात्मा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ४

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श्लोक

अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन् ।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ।।

पद पदार्थ

अज: अपि सन् – जन्महीन ( कर्मानुसार जन्म न होने के कारण )
अव्ययात्मा ( अपि सन् ) – अविनाशी ( कर्म से प्रभावित मृत्यु / विनाश न होने के कारण)
भूतानां – सभी प्राणियों के लिए
ईश्वर: अपि सन् – भगवान होने के कारण
स्वां प्रकृतिं – विलक्षण रूप ( आध्यात्मिक पदार्थ से बनायी गयी )
अधिष्ठाय – स्वीकार करते हुए
आत्म मायया – मेरी इच्छा से
सम्भवामि – कई जन्मों में अवतरित होता हूँ

सरल अनुवाद

जन्महीन और अविनाशी होने के कारण, सभी प्राणियों के भगवान होने के कारण , मेरी इच्छा से विलक्षण रूप स्वीकार करते हुए कई जन्मों में अवतरित होता हूँ।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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