श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।
पद पदार्थ
भारत – हे भरतवंशी !
यदा यदा हि – जब भी
धर्मस्य – धर्म की
ग्लानि: भवति – क्षीणता होता है
अधर्मस्य – अधर्म का
अभ्युत्थानं (भवति ) – उत्थान होता है
तदा – तब
अहं – मैं
आत्मानं – अपने आप को
सृजामि – रच लेता हूँ
सरल अनुवाद
हे भरतवंशी ! जब भी धर्म की क्षीणता होता है और अधर्म का उत्थान होता है, तब मैं अपने आप को रच लेता हूँ ( कई अवतारों में प्रकट होता हूँ) ।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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