५.२८ – यतेन्द्रियमनोबुद्धि:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ५

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श्लोक

यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः।
विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः ॥

पद पदार्थ

यतेन्द्रिय मनोबुद्धि: – नियंत्रित इंद्रिय, मन और बुद्धि के साथ [ आत्म संबंधित विषयों के अलावा अन्य सभी वस्तुओं से दूर रहना ]
विगतेच्छाभयक्रोध: – वासना [ उन वस्तुओं के प्रति ] से मुक्त , भय ( अपनी अपेक्षाएँ पूरी न होने का ) से मुक्त और क्रोध ( उन लोगों पर जो उन अभिलाषाएँ पूरी न होने के कारण हैं ) से मुक्त
मोक्ष परायणः – मोक्ष अर्थात् आत्म साक्षात्कार को परम उद्देश्य मानकर
मुनि: – वो जिसे स्वाभाविक रूप से आत्म दृष्टि हो
य: – जो इस प्रकार जीता है
स: – वह
सदा मुक्त एव: – हमेशा मुक्त रहता है

सरल अनुवाद

वह जो नियंत्रित इंद्रिय, मन और बुद्धि के साथ [ आत्म संबंधित विषयों के अलावा अन्य सभी वस्तुओं से दूर रहना ] रहता है , वासना [ उन वस्तुओं के प्रति ] से मुक्त हो , भय ( अपनी अपेक्षाएँ पूरी न होने का ) से मुक्त हो और क्रोध ( उन लोगों पर जो उन अभिलाषाएँ पूरी न होने के कारण हैं ) से मुक्त हो, मोक्ष अर्थात् आत्म साक्षात्कार को परम उद्देश्य मानकर, स्वाभाविक रूप से आत्म दृष्टि हो , वह हमेशा मुक्त रहता है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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