५.२७ – स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ५

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श्लोक

स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवो: |
प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ||

पद पदार्थ

बाह्यां स्पर्शान् – इन्द्रिय वस्तुओं के बाहरी संपर्क
बहि: कृत्वा – बंद करके
चक्षु: च – दोनों आँखों को
भ्रुवो: अन्तरे एव ( कृत्वा ) – भौंहों के बीच स्थिर रखके
नासाभ्यन्तर चारिणौ – जो नाक के अंदर परिसंचारण करते हैं
प्राण अपानौ – प्राण और अपान जैसे प्राणवायु
समौ कृत्वा – बराबर करते

सरल अनुवाद

इन्द्रिय वस्तुओं के बाहरी संपर्क को बंद करके, दोनों आँखों को भौंहों के बीच स्थिर रखके, प्राण और अपान जैसे प्राणवायु जो नाक के अंदर परिसंचारण करते हैं , ऐसे प्राणवायु को बराबर करते…. [ अगला श्लोक देखिये ]

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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