७.१५ – न मां दुष्कृतिनो मूढा:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ७

<< अध्याय ७ श्लोक १४

श्लोक

न मां दुष्कृतिनो मूढा: प्रपध्यन्ते नराधमा : |
माययाऽपह्रतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिता : ||

पद पदार्थ

मूढा: – मूर्ख
नराधमा: – मनुष्यों में सबसे निम्न
मायया अपहृत ज्ञान: – जिनके पास (अतार्किक तर्क आदि) माया द्वारा नष्ट किया गया ज्ञान
आसुरं भावं आश्रिता: – आसुरी स्वभाव वाले
दुष्कृतिन: (चतुर्विधा:) – चार प्रकार के पापी (जो उनके उल्लेख के क्रम में पिछले पापियों से बड़े हैं)
मां – मुझे
न प्रपद्यन्ते – समर्पण नहीं करते

सरल अनुवाद

मूर्ख, मनुष्यों में निम्नतम, (अतार्किक तर्क आदि) माया द्वारा नष्ट किया गया ज्ञान वाले और आसुरी स्वभाव वाले ये चार प्रकार के पापी हैं (जो अपने उल्लेख के क्रम में पिछले पापियों से भी बड़े हैं) जो  मुझे समर्पण नहीं करते हैं |

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

>> अध्याय ७.१६

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/7-15/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org