श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः ।
प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः ॥
पद पदार्थ
ये – ऐश्वर्यार्थी ( जो लोग सांसारिक धन की इच्छा रखते हैं )
स अधिभूत अधिदैवं – अधिभूत और अधिदैव गुणों से युक्त [ इन्हें आठवें अध्याय में समझाया गया है ]
मां – मुझे
विदुः – जानना चाहिए
( मां ) स अधियज्ञं च विदुः – ( अन्य दोनों की तरह [ कैवल्यार्थी ( जो आत्मानंद की इच्छा रखते हैं ) और भगवत् कैंकर्यार्थी ( जो लोग भगवान से कैंकर्य की कामना करते हैं ) ] ) , वे मुझे अधियज्ञ के गुण से युक्त जानना चाहिए
ते च – ये तीन प्रकार के लोग ( जो अपनी इच्छा पूरी करने के लिये मुझ में लगे हुए हैं )
प्रयाण काले अपि – अपने शरीर त्यागते समय [ मृत्यु के समय ] (अपने इच्छित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए )
युक्त चेतसः – मुझे स्मरण किये ( अपने इच्छित लक्ष्य के अनुसार )
मां विदुः – जानना चाहिए
सरल अनुवाद
ऐश्वर्यार्थी ( जो लोग सांसारिक धन की इच्छा रखते हैं ) मुझे अधिभूत और अधिदैव गुणों से युक्त जानना चाहिए [ इन्हें आठवें अध्याय में समझाया गया है ] ; ( अन्य दोनों [ कैवल्यार्थी ( जो आत्मानंद की इच्छा रखते हैं ) और भगवत् कैंकर्यार्थी ( जो लोग भगवान से कैंकर्य की कामना करते हैं ) ] की तरह ) , वे मुझे अधियज्ञ के गुण से युक्त जानना चाहिए ; ये तीन प्रकार के लोग ( जो अपनी इच्छा पूरी करने के लिये मुझ में लगे हुए हैं ) अपने शरीर त्यागते समय [ मृत्यु के समय ] मुझे स्मरण किये जाने योग्य के रूप में जानें ( अपने इच्छित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ) |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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