९.११ – अवजानन्ति मां मूढा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ९

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श्लोक

अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम् |
परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम् ||

पद पदार्थ

मूढा – मूर्ख
मां – मेरे
परं भावं – सर्वोच्च स्थिति
अजानन्त: – अज्ञानी होकर
भूतमहेश्वरम् – सभी वस्तुओं का सर्वोच्च स्वामी होते हुए
मानुषीं तनुं आश्रितम् – मानव रूप धारण किया
मां – मेरे
अवजानन्ति – अपमान करते हैं

सरल अनुवाद

जो मूर्ख, मेरे सर्वोच्च स्थिति से अज्ञान हैं, वे मेरे , जिसने सभी वस्तुओं का सर्वोच्च स्वामी होते हुए भी मानव रूप धारण किया है , अपमान करते हैं ।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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