९.२ – राजविद्या राजगुह्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ९

<< अध्याय ९ श्लोक १

श्लोक

राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् |
प्रत्यक्षावगमं  धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम् ||

पद पदार्थ

इदम् – यह भक्ति योग
राज विद्या – विद्याओं में सर्वश्रेष्ठ (ज्ञान/मार्ग)
राज गुह्यम् – रहस्यों में सर्वश्रेष्ठ
उत्तमं पवित्रं – पापों को दूर करने वालों में सर्वश्रेष्ठ
प्रत्यक्षावगमं – वह जो (मेरे, कृष्ण के) साक्षात्कार में सहायता करता है
धर्म्यं – मुझे प्राप्त करने का साधन है
सुसुखं कर्तुं – पालन करने में आसान
अव्ययम् – अविनाशी (परिणाम देने के बाद भी)

सरल अनुवाद

यह भक्ति योग, (ज्ञान/मार्ग) विद्या  में सर्वोत्तम है, रहस्यों में सर्वोत्तम है, पापों को दूर करने वालों में सर्वोत्तम है, (मेरे, कृष्ण के) साक्षात्कार में सहायता करता है, मुझे प्राप्त करने का साधन है,पालन करने में आसान है और (परिणाम देने के बाद भी)अविनाशी है ।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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