९.२९ – समोऽहं सर्वभूतेषु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ९

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श्लोक

समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रिय: |
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् ||

पद पदार्थ

अहं – मैं
सर्वभूतेषु – विभिन्न प्रजातियों के सभी प्राणियों के लिए
सम: – समान (जो कोई मेरी शरण लेना चाहता है) हूँ
मे – मेरे लिये
न द्वेष्य: अस्ति – कोई भी मेरा आश्रय लेने से अयोग्य नहीं है ( क्योंकि वे हीन हैं )
न प्रिय: (अस्ति) – कोई भी मेरी शरण में आने के योग्य नहीं है ( श्रेष्ठ होने के कारण )
ये तु – जो लोग
मां – मुझमें
भक्त्या भजन्ति – भक्ति प्राप्त करने के लिए अपना प्रेम प्रकट करते हैं
मयि ते – वे मुझमें रहते हैं
तेषु च – उनमें
अहम् अपि – मैं भी रहता हूँ (मैं बहुत आदर से उनके साथ बातचीत करता हूँ )

सरल अनुवाद

मैं विभिन्न प्रजातियों के सभी प्राणियों के लिए समान (जो कोई मेरी शरण लेना चाहता है) हूँ ; मेरे लिये कोई भी मेरा आश्रय लेने से अयोग्य नहीं है ( क्योंकि वे हीन हैं ) और ( श्रेष्ठ होने के कारण ) कोई भी मेरी शरण में आने के योग्य नहीं है ; जो लोग मेरे प्रति भक्ति प्राप्त करने के लिए अपना प्रेम प्रकट करते हैं, वे मुझमें रहते हैं और मैं भी उनमें रहता हूँ (बहुत आदर से उनके साथ बातचीत करता हूँ ) |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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