९.३० – अपि चेत् सुदुराचारो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ९

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श्लोक

अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् |
साधुरेव स मन्तव्य: सम्यग्व्यवसितो हि स: ||

पद पदार्थ

सु दुराचार अपि – भले ही किसी के लक्षण/आचरण बहुत ही निम्न हो
मां – मुझ पर
अनन्यभाक् – बिना किसी अन्य लाभ की इच्छा के
भजते चेत् – यदि वह मेरी पूजा करता है
स: – वह
साधु एव – ज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ के समान ही अच्छा है
मन्तव्य: – वह प्रशंसा का पात्र है

(इसका कारण यह है कि )
स: – वह
सम्यक् – बहुत
व्यवसितो हि – ( मुझ पर ) दृढ़ विश्वास और लगाव है

सरल अनुवाद

भले ही किसी के लक्षण/आचरण बहुत ही निम्न हो , यदि वह बिना किसी अन्य लाभ की इच्छा के मेरी पूजा करता है , वह ज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ के समान ही अच्छा है; वह प्रशंसा का पात्र है | इसका कारण यह है कि उसको ( मुझ पर ) बहुत दृढ़ विश्वास और लगाव है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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