श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
किं पुनर्ब्राह्मणा: पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा |
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् ||
पद पदार्थ
पुण्या: – पूर्व पुण्य कर्मों के कारण ऐसा जन्म हुआ है
ब्राह्मणा: – ब्राह्मण (पुरोहित वर्ग )
राजर्षय तथा – राजर्षि ( राजसी साधु )
भक्ता: – यदि वे मेरे प्रति भक्ति में लगें तो
( कि उनको मुक्ति प्राप्त होगी )
किं पुन: – क्या यह समझाना आवश्यक है ?
(इसलिए )
अनित्यं – अस्थायी
असुखं – दुःख से भरा
इमं लोकं – इस संसार में
प्राप्य – उपस्थित होने के कारण
मां भजस्व – मेरे प्रति भक्ति में लगे रहो
सरल अनुवाद
क्या यह समझाना आवश्यक है कि यदि वे ब्राह्मण (पुरोहित वर्ग ) और राजर्षि ( राजसी साधु ) जिनके पूर्व पुण्य कर्मों के कारण ऐसा जन्म हुआ है , मेरे प्रति भक्ति में लगें तो उनको मुक्ति प्राप्त होगी ? इसलिए इस संसार में उपस्थित होने के कारण जो अस्थायी है और दुःख से भरा है , मेरे प्रति भक्ति में लगे रहो |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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