श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना |
मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः ||
पद पदार्थ
इदं सर्वं जगत् – ये सभी संसार (जो चेतन (संवेदनशील वस्तु ) और अचेतन (असंवेदनशील वस्तु) से बने हैं)
अव्यक्त मूर्तिना मया – मेरे अन्तर्यामी रूप से जो सूक्ष्म है
ततं – व्याप्त है
सर्वभूतानि – सभी जीव
मत् स्थानि – मुझमें (जो अंतर्यामी हूँ) हैं (विश्राम कर रहे हैं )
अहं तेषु न च अवस्थित: – मैं उनमें (विश्राम) नहीं कर रहा हूँ (जैसे वे मुझ पर आश्रित होकर विश्राम करते हैं)
सरल अनुवाद
ये सभी संसार (जो चेतन (संवेदनशील वस्तु) और अचेतन (असंवेदनशील वस्तु) से बने हैं, मेरे अंतर्यामी रूप ,जो सूक्ष्म है, से व्याप्त हैं ; सभी जीव मुझमें (जो अन्तर्यामी हूँ) हैं (विश्राम कर रहे हैं) लेकिन मैं उनमें नहीं हूँ (जैसे वे मुझ पर आश्रित होकर विश्राम करते हैं)।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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