श्री भगवद्गीता का सारतत्व – अध्याय १० (विभूति विस्तार योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना << अध्याय ९ गीतार्थ संग्रह के चौदहवें श्लोक में, स्वामी आळवन्दार दसवें अध्याय का सारांश समझाते हुए कहते हैं, “साधना भक्ति [भगवान को पाने के साधन के रूप में भक्ति योग की प्रक्रिया] को प्रकट करने और उसका पोषण करने के लिए, … Read more

श्री भगवद्गीता का सारतत्व – अध्याय ९ (राजविद्या राजगुह्य योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना << अध्याय ८ गीतार्थ संग्रह के तेरहवें श्लोक में स्वामी आळवन्दार नौवें अध्याय का सारांश समझाते हुए कहते हैं, “ नौवें अध्याय में उनकी अपनी महानता, उनका मानव रूप में भी सर्वोच्च होना, उन ज्ञानियों की महानता जो महात्मा हैं (इनके साथ) … Read more

श्री भगवद्गीता का सारतत्व – अध्याय ८ (अक्षर परब्रह्म योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना << अध्याय ७ गीतार्थ संग्रह के बारहवे श्लोक में स्वामी आळवन्दार् , भगवद्गीता के आठवे अध्याय की सार को समझाते हैं, ” आठवे अध्याय में, तीन प्रकार के भक्तों, अर्थात् ऐश्वर्यार्थी जो भौतिक संपत्ति की इच्छा रखते हैं, कैवल्यार्थी जो भौतिक शरीर … Read more

१०.४२ – अथवा बहुनैतेन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १० << अध्याय १० श्लोक ४१ श्लोक अथवा बहुनैतेन किं ज्ञानेन तवार्जुन।विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्।। पद पदार्थ अर्जुन – हे अर्जुन !अथवा – मगरबहुना एतेन ज्ञानेन – इस ज्ञान का, जो कई अलग-अलग तरीकों से समझाया गया हैतव किं – तुम्हारे लिए क्या उपयोग है … Read more

१०.४१ – यद् यद् विभूतिमत्सत्त्वं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १० << अध्याय १० श्लोक ४० श्लोक यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंशसंभवम्।। पद पदार्थ यद् यद् सत्त्वं – जिस जिस प्राणीविभूतिमत् – ऐसी महिमा है जो उसके द्वारा नियंत्रित होती हैश्रीमत् – तेजस्विता युक्तऊर्जितम् एव वा – शुभ कार्यों के आरंभ हेतु स्थिर रहता … Read more

श्री भगवद्गीता का सारतत्व – अध्याय ७ (विज्ञान योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना << अध्याय ६ गीतार्थ संग्रह के ग्यारहवे श्लोक में स्वामी आळवन्दार् , भगवद्गीता के सातवे अध्याय की सार को दयापूर्वक समझाते हैं , ” सातवे अध्याय में , परमपुरुष का वास्तविक स्वरूप अर्थात् वही उपासना ( भक्ति ) के वस्तु हैं , … Read more

१०.४० – नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १० << अध्याय १० श्लोक ३९ श्लोक नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप।एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया।। पद पदार्थ परन्तप – हे शत्रुओं का अत्याचारी !मम – मेरेदिव्यानां – शुभविभूतीनां – संपत्ति/वैभवअंत: – कोई अंतन अस्ति – नहीं हैएष – मैने अब तक जो कुछ भी … Read more

१०.३९ – यच्चापि सर्वभूतानां

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १० << अध्याय १० श्लोक ३८ श्लोक यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन।न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्।। पद पदार्थ अर्जुन – हे अर्जुन !सर्वभूतानां – सभी वस्तुओं मेंयत् बीजं – जो कुछ भी उपादान कारण (भौतिक कारण) है [एक पौधे के बीज की तरह]तत् अपि च … Read more

१०.३८ – दण्डो दमयतामस्मि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १० << अध्याय १० श्लोक ३७ श्लोक दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम्।मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्।। पद पदार्थ दमयतां – हद पार करने वालों को दण्ड देने वालों कादण्ड: अस्मि – मैं दण्ड हूँजिगीषतां – जो विजयी होने की इच्छा रखते हैंनीति: अस्मि – मैं उन … Read more

१०.३७ – वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १० << अध्याय १० श्लोक ३६ श्लोक वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनञ्जयः।मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः।। पद पदार्थ वृष्णीनां – उन यादवों में से, जो वृष्णि वंश का अंश हैंवासुदेव: अस्मि – मैं वासुदेव हूँपाण्डवानां – पांडवों मेंधनञ्जयः – मैं अर्जुन हूँमुनीनाम् अपि – मुनियों (जो ध्यान … Read more