१७.४ – यजन्ते सात्विका देवान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ३ श्लोक यजन्ते सात्विका देवान् यक्षरक्षांसि राजसा: |प्रेतान् भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जना: || पद पदार्थ सात्विका: – जिनके पास सत्व गुण (अच्छाई) प्रचुर मात्रा में है, और इसी प्रकार की श्रृद्धा हैदेवान् – देवताओं कायजन्ते – पूजा करते हैं ;राजसा: – जिनके … Read more

१७.३ – सत्वानुरूपा सर्वस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक २ श्लोक सत्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत |श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्ध: स एव स: || पद पदार्थ भारत – हे भरत कुल के वंशज!सर्वस्य – सबके लिएसत्वानुरूपा – उनके इच्छा के अनुसारश्रद्धा भवति – श्रद्धा होती हैअयं पुरुष:- यह व्यक्तिश्रद्धामय: – … Read more

१७.२ – त्रिविधा भवति श्रद्धा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १ श्लोकश्री भगवान उवाचत्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा |सात्विकी राजसी  चैव तामसी  चेति तां श्रुणु || पद पदार्थ श्री भगवान उवाच – श्री भगवान बोलेदेहिनां – उनके लिए जिनके पास (भौतिकवादी) शरीर हैस्वभावजा सा श्रद्धा – विभिन्न विषयों में … Read more

१७.१ – ये शास्त्रविधिम् उत्सृज्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १६ श्लोक २४ श्लोक अर्जुन उवाच ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयाऽन्विता: |तेषां  निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तम: || पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन बोलाकृष्ण – हे कृष्ण!ये – वेशास्त्र विधिम् उत्सृज्य – शास्त्र के नियमों की अवहेलना करके भीश्रद्धया अन्विता: – … Read more

अध्याय १७ – श्रद्धात्रय विभाग योग या आस्था के त्रिस्तरीय प्रभाग की पुस्तक

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः << अध्याय १६ भगवद् रामानुज आळवार् तिरुनगरी में , श्रीपेरुम्बुदूर् में , श्रीरंगम् में और तिरुनारायणपुरम् में आधार – http://githa.koyil.org/index.php/17/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

१६.२४ – तस्माच् चास्त्रं प्रमाणं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक २३ श्लोक तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ |ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि  || पद पदार्थ तस्मात् – इस प्रकारते – तुम्हारे लिएकार्या कार्य व्यवस्थितौ – यह निर्धारित करने के लिए कि क्या करना है और क्या त्यागना हैशास्त्रं – वेद ही एकमात्र … Read more

१६.२३ – यः शास्त्रविधिम् उत्सृज्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक २२ श्लोक य: शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारत : |न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां  गतिम् || पद पदार्थ य:- जोशास्त्र विधिम् – वेद जो मेरा आदेश हैउत्सृज्य – त्यागकरकाम कारत: वर्तते – अपनी इच्छा से कार्य करनास:- वहसिद्धिम् – परलोक … Read more

१६.२२ – एतैर् विमुक्तः कौन्तेय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक २१ श्लोक एतैर्विमुक्तः कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नर: |आचरत्यात्मन: श्रेयस्ततो याति परां गतिम्  || पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्ती पुत्र!तमो द्वारै: – अंधकार के कारण हैं (अर्थात, मेरे बारे में मिथ्याबोध )एतै: त्रिभि: – इन तीनों से – वासना, क्रोध और लोभविमुक्त: … Read more

१६.२१ – त्रिविधं नरकस्यैतद्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक २० श्लोक त्रिविधं नरकस्यैतद् द्वारं नाशनमात्मन: |काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् || पद पदार्थ काम: – वासनाक्रोध: – क्रोधतथा लोभ: – लोभएतत् – ये नरकस्य – आसुरी प्रकृति के नरकआत्मान: नाशनं – आत्मा को नष्ट करने केत्रिविधं द्वारं – तीन प्रकार … Read more

१६.२० – आसुरीं योनिम् आपन्ना

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक १९ श्लोक आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि |मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम् || पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्ती पुत्र!असुरीं योनिम् आपन्ना: – (जैसा कि पिछले श्लोक में बताया गया है)राक्षसी योनि प्राप्त कर चुके ये लोग,जन्मनि जन्मनि – आने वाले जन्मों मेंमूढा – … Read more