अध्याय १३ – क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग या पदार्थ – आत्मा भेद की पुस्तक

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः << अध्याय १२ कृष्ण के मुँह में संसार भगवद् रामानुज आळवार् तिरुनगरी में , श्रीपेरुम्बुदूर् में , श्रीरंगम् में और तिरुनारायणपुरम् में >> अध्याय १४ आधार – http://githa.koyil.org/index.php/13/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

१२.२० – ये तु धर्म्यामृतम् इदम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १९ श्लोक ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते |श्रद्धधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रिया: || पद पदार्थ ये तु – वे जोधर्म्यामृतम् इदम् – यह भक्ति योग जो प्रापकम् (साधन) और प्राप्यम् (लक्ष्य) हैयथोक्तं – जैसा कि इस अध्याय के दूसरे श्लोक … Read more

१२.१९ – तुल्यनिन्दास्तुति: मौनी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १८ श्लोक तुल्यनिन्दास्तुति: मौनी सन्तुष्टो येन केनचित् |अनिकेत: स्थिरमति: भक्तिमान् मे प्रियो नर: || पद पदार्थ तुल्य निंदा स्तुति: – स्तुति और निंदा के प्रति समान होनामौनी – चुप रहना (जब अन्य लोग उसकी प्रशंसा या निंदा करते हैं)येन केनचित् … Read more

१२.१८ – समः शत्रौ च मित्रे च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १७ श्लोक समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानावमानयो: |शीतोष्णसुखदु:खेषु सम: सङ्गविवर्जित: || पद पदार्थ शत्रौ च मित्रे च सम: – शत्रु और मित्र (जो समीप हैं) के प्रति सम भाव रखनातथा – उसी प्रकारमानावमानयो: (सम:) – वैभव और अपमान … Read more

१२.१७ – यो न हृष्यति न द्वेष्टि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १६ श्लोक यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति |शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान् य: स मे प्रिय: || पद पदार्थ य: न हृष्यति – वह कर्म योग निष्ठ (कर्म योग अभ्यासी) जो (सुखद पहलुओं को देखकर) आनंदित नहीं होतान द्वेष्टि … Read more

१२.१६ – अनपेक्षः सुचि: दक्ष:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १५ श्लोक अनपेक्षः शुचि: दक्ष उदासीनो गतव्यथ : |सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्त: स मे प्रिय: || पद पदार्थ अनपेक्ष: – आत्मा के अलावा किसी अन्य वस्तु की इच्छा न करनाशुचि:- आहार शुद्धि (भोजन सेवन में शुद्धता) होनादक्ष: – एक विशेषज्ञ होना … Read more

१२.१५ – यस्मान् नोद्विजते लोको

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १४ श्लोक यस्मान् नोद्विजते लोको लोकान् नोद्विजते च य: |हर्षामर्षभयोद्वेगै: मुक्तो य: स च मे प्रिय: || पद पदार्थ यस्मात् – उस कर्म योग निष्ठ (कर्म योग अभ्यासी) से लोक: – यह संसारन उद्विजते – भय से कांपता नहींय: – … Read more

१२.१४ – सन्तुष्ट: सततं योगी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १३ श्लोक सन्तुष्ट: सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चय: |मय्यर्पित मनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स: मे प्रियः || पद पदार्थ सन्तुष्ट:- सन्तुष्ट रहनासततं योगी – जो सदैव स्वयं का ध्यान करता हैयतात्मा – नियन्त्रित मन वाला हैदृढ़ निश्चय: – दृढ़ ज्ञान/विश्वास होना (शास्त्र में … Read more

१२.१३ – अद्वेष्टा सर्वभूतानाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १२ श्लोक अद्वेष्टा सर्वभूतानां  मैत्र: करुण एव च ​​|निर्ममो निरहङ्कार: समदु:खसुख: क्षमी || पद पदार्थ सर्व भूतानाम् अद्वेष्टा – किसी भी प्राणी से घृणा नहीं करनामैत्र:- सभी प्राणियों के प्रति मित्रता से रहनाकरुण एव च – उनके प्रति दया दिखाना … Read more

१२.१२ – श्रेयो हि ज्ञानं अभ्यासात्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक ११ श्लोक श्रेयो हि ज्ञानम् अभ्यासात् ज्ञानात् ध्यानं विशिष्यते |ध्यानात् कर्मफलत्याग: त्यागाचछान्तिरनन्तरम् || पद पदार्थ अभ्यासात् – भगवान के प्रति (सच्चे प्रेम के बिना) भक्ति से श्रेष्ट ज्ञानं – वह ज्ञान जो प्रत्यक्ष दर्शन की सुविधा देता है (जो ऐसी … Read more