९.७ – सर्वभूतानि कौन्तेय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ६ श्लोक सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं  यान्ति  मामिकाम् |कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम् || पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्ती पुत्र!कल्पक्षये – ब्रह्मा के जीवन काल के अंत मेंसर्व भूतानि – सभी वस्तुएँमामिकाम् – जो मेरा शरीर हैप्रकृतिं – मूल प्रकृति में … Read more

९.६ – यथाऽऽकाशस्थितो नित्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ५ श्लोक यथाऽऽकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान् |तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय // पद पदार्थ सर्वत्रग: – सर्वत्र व्याप्तमहान् – महाननित्यं आकाशस्थित: – सदैव आकाश (जो किसी भी वस्तु का सहारा नहीं है )में रहता हैवायु: -हवायथा – मुझे ही विश्राम … Read more

९.५ – न च मत्स्थानि भूतानि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ४ श्लोक न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम् |भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावन: || पद पदार्थ मत्स्थानि न च – वे मुझमें नहीं हैं (जैसे पानी को घड़े आदि के सहारे रखा जाता है ,लेकिन वे मेरी इच्छा से … Read more

९.४ – मया ततम् इदं सर्वम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक ३ श्लोक मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना |मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः || पद पदार्थ इदं सर्वं जगत् – ये सभी संसार (जो चेतन (संवेदनशील वस्तु ) और अचेतन (असंवेदनशील वस्तु) से बने हैं)अव्यक्त मूर्तिना मया – मेरे अन्तर्यामी रूप से … Read more

९.३ – अश्रद्धधानाः पुरुषा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक २ श्लोक अश्रद्धधाना: पुरुषा धर्मस्यास्य  परन्तप  |अप्राप्य मां  निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि || पद पदार्थ परन्तप – हे शत्रुओं को पीडित करने वाले!अस्य धर्मस्य अश्रद्धधाना: पुरुषा – जो लोग भक्ति योग की इस प्रक्रिया में विश्वासहीन हैंमां – मुझे अप्राप्य – प्राप्त किये … Read more

९.२ – राजविद्या राजगुह्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक १ श्लोक राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् |प्रत्यक्षावगमं  धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम् || पद पदार्थ इदम् – यह भक्ति योगराज विद्या – विद्याओं में सर्वश्रेष्ठ (ज्ञान/मार्ग)राज गुह्यम् – रहस्यों में सर्वश्रेष्ठउत्तमं पवित्रं – पापों को दूर करने वालों में सर्वश्रेष्ठप्रत्यक्षावगमं – वह जो … Read more

९.१ – इदं तु ते गुह्यतमम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ श्लोक श्री भगवान उवाचइदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे |ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् || पद पदार्थ श्री भगवान उवाच – श्री भगवान बोलेयत् ज्ञात्वा – जिसे जानकरअशुभात् मोक्ष्यसे – सभी पुण्य/पाप (गुण/अवगुण) से मुक्ति (जो तुम्हे मुझे प्राप्त करने से रोकते हैं)इदं गुह्य तमं ज्ञानं … Read more

अध्याय ९ – राजविद्या राजगुह्य योग या राजकीय  बुद्धि और राजकीय रहस्य की पुस्तक

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः <<अध्याय ८ कृष्ण के मुख में विश्व भगवद् रामानुज आळवार् तिरुनगरी में , श्रीपेरुम्बुदूर् में , श्रीरंगम् में और तिरुनारायणपुरम् में >>अध्याय १० आधार – http://githa.koyil.org/index.php/9/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

८.२८ – वेदेषु यज्ञेषु तपस्सु चैव

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक २७ श्लोक वेदेषु यज्ञेषु तप:सु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम् |अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम् || पद पदार्थ वेदेषु – वेदों का पाठ करनायज्ञेषु – यज्ञ (बलि)तपस्सु च – और विभिन्न प्रकार के तप (तपस्या)दाने च एव – और … Read more

८.२७ – नैते सृती पार्थ जानन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक २६ श्लोक नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन | तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन  ||  पद पदार्थ पार्थ अर्जुन – हे कुंती पुत्र अर्जुन!एते सृती – ये दोनों,अर्चिरादि और धूमादि मार्गों कोजानन् – जानता हैकश्चन योगी – कोई भी ज्ञानीन मुह्यति – कभी भी … Read more