१८.१७ – यस्य नाहंकृतो भावो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १६ श्लोक यस्य नाहंकृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते।हत्वाऽपि स इमान् लोकान् न हन्ति न निबध्यते।। पद पदार्थ यस्य भाव: – (कर्तापन पर) जिसके विचारन अहंकृत: – “मैं कर्ता हूँ” के अभिमान से उत्पन्न नहीं हो रहे होयस्य बुद्धि: – जिसकी … Read more

१८.१६ – तत्रैवं सति कर्तारम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १५ श्लोक तत्रैवं सति कर्तारमात्मानं केवलं तु यः।पश्यत्यकृतबुद्धित्वान्न स पश्यति दुर्मतिः।। पद पदार्थ एवं सति – जब कि यह इस प्रकार है (अर्थात् जीवात्मा के कार्य परमात्मा की अनुमति पर निर्भर हैं)तत्र – अपने कार्यों मेंकेवलम् आत्मानं तु – स्वयं … Read more

१८.१५ – शरीरवाङ्मनोभिर्यत्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १४ श्लोक शरीरवाङ्मनोभिर्यत्कर्म प्रारभते नरः।न्याय्यं वा विपरीतं वा पञ्चैते तस्य हेतवः।। पद पदार्थ न्याय्यं वा – जो शास्त्र में स्थापित हैविपरीतं वा – जो शास्त्र में निषिद्ध हैयत् कर्म – किसी भी कार्यशरीर वाङ् मनोभि: – शरीर, वाणी और मन … Read more

१८.१४ – अधिष्ठानं तथा कर्ता

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १३ श्लोक अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम्।विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम्।। पद पदार्थ अधिष्ठानं – शरीरतथा कर्ता – आत्मापृथक् विधं करणं च – कर्मेन्द्रिय (मन सहित पाँच क्षमताएँ)विविधा: पृथक् चेष्टा च – इसी प्रकार प्राण (प्राणवायु) जिसके पाँच विभिन्न … Read more

१८.१३ – पञ्चैतानि महाबाहो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १२ श्लोक पञ्चैतानि महाबाहो कारणानि निबोध मे।सांख्ये कृतान्ते प्रोक्तानि सिद्धये सर्वकर्मणाम्।। पद पदार्थ महाबाहो – हे महाबाहो!सांख्ये कृतान्ते – वेद के अनुरूप सच्चे ज्ञान का उपयोग करके सत्य का निर्धारण करते समयसर्व कर्मणां सिद्धये – सभी कार्यों को पूरा करने … Read more

१८.१२ – अनिष्टमिष्टं मिश्रं च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ११ श्लोक अनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मणः फलम्।भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तु संन्यासिनां क्वचित्।। पद पदार्थ अनिष्टं – नरक आदि जो दुःख देते हैं (कर्म करने वाले को)इष्टं – स्वर्ग आदि जो आनंद देते हैं (कर्म करने वाले को)मिश्रं च – … Read more

१८.११ – न हि देहभृता शक्यं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १० श्लोक न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः।यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते।। पद पदार्थ देह भृता – शरीर को धारण करने वाली आत्मा द्वाराकर्माणि – कर्मोंअशेषतः त्यक्तुं – पूर्णतः त्याग करनान हि शक्यं – क्या संभव है?य: – वहकर्म फल त्यागी … Read more

१८.१० – न द्वेष्ट्यकुशलं कर्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ९ श्लोक न द्वेष्ट्यकुशलं कर्म कुशले नानुषज्जते।त्यागी सत्वसमाविष्टो मेधावी छिन्नसंशयः।। पद पदार्थ सत्व समाविष्ट: – जैसे कि पहले कहा गया है, सत्वगुण में स्थितमेधावी – (उसी कारण) सत्य का सच्चा ज्ञान के साथछिन्नसंशयः – (उसी कारण) समस्त संशय से मुक्तत्यागी … Read more

१८.९ – कार्यम् इत्येव यत् कर्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ८ श्लोक कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेऽर्जुन।सङ्गं त्यक्त्वा फलं चैव स त्यागः सात्विको मतः।। पद पदार्थ अर्जुन – हे अर्जुन!नियतं कर्म – नित्य, नैमित्तिक कर्मों कोसङ्गं फलं चैव त्यक्त्वा – ‘यह मेरा कर्म है’ और कर्म के फल की आसक्ति को … Read more

१८.८ – दुःखम् इत्येव यत् कर्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ७ श्लोक दुःखमित्येव यत्कर्म कायक्लेशभयात् त्यजेत्।स कृत्वा राजसं त्यागं नैव त्यागफलं लभेत्।। पद पदार्थ काय क्लेश भयात् – शरीर को होने वाले कष्ट के भय सेदुःखम् इति एव – दुःखदायी होने के कारणकर्म – नित्य कर्म (दैनिक अनुष्ठान), नैमित्तिक कर्म … Read more