१८.६८ – य इदं परमं गुह्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ६७ श्लोक य इदं परमं गुह्यं मद्भक्तेश्वभिधास्याति |भक्तिं  मयि परां  कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशय: || पद पदार्थ य :- जोपरमं गुह्यं इदं – यह शास्त्र जो अत्यंत गोपनीय हैमद्भक्तेषु – मेरे भक्तों कोअभिधास्याति – समझाता है (वह)मयि – मेरी ओरपरां भक्तिं कृत्वा … Read more

१८.६७ – इदं ते नातपस्काय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ६६ श्लोक इदं ते नातपस्काय नाभक्ताय कदाचन |न चाशुश्रूषवे  वाच्यं न च मां  योऽभ्यसूयति || पद पदार्थ इदं – यह शास्त्र (जो मैंने तुम्हें गोपनीय रूप से समझाया था)ते – तुम्हारे द्वाराअतपस्काय न (वाच्यं) – उसे नहीं कहना चाहिए जिसने … Read more

१८.६६ – सर्वधर्मान् परित्यज्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ६५ श्लोक सर्वधर्मान् परित्यज्य माम् एकम् शरणं व्रज |अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: || पद पदार्थ सर्व धर्मान्- सभी साधनों कोपरित्यज्य – पूर्णतया त्याग करनामाम् एकम् – मुझे ही एकमात्रशरणं – साधन के रूप मेंव्रज – समझोअहं – मैंत्वा – … Read more

१८.६५ – मन्मना भव मद्भक्तो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ६४ श्लोक मन्मना भव मद्भक्तो मध्याजि मां  नमस्कुरु |मामेवैष्यसि  सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे || पद पदार्थ मन्मना भव – अपना मन निरंतर मुझमें केन्द्रित रखो;मद्भक्त: भव – (इस से भी ) मुझमें गहरा प्रेम रखो;मध्याजी भव – (इस से … Read more

१८.६४ – सर्वगुह्यतमं भूयः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ६३ श्लोक सर्वगुह्यतमं भूय: श्रुणु मे परमं वच: |इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् || पद पदार्थ सर्व गुह्यतमं – भक्ति योग जो इन सभी रहस्यों में अति गोपनीय हैमे – मेरापरमं वच: – सर्वोच्च वचनभूय: श्रुणु – फिर से … Read more

१८.६३ – इति ते ज्ञानम् आख्यातम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ६२ श्लोक इति ते ज्ञानम् आख्यातं गुह्याद् गुह्यतरं मया |विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु || पद पदार्थ इति – इस प्रकारगुह्याद् गुह्यतरं – रहस्यों में सबसे गुप्तज्ञानं – ज्ञान (मुक्ति प्रदान करने वाला)ते – तुम्हेंमया – मेरे द्वाराआख्यातं – समझाया गया;एतत् – यहअशेषेण … Read more

१८.६२ – तम् एव शरणं गच्छ

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ६१ श्लोक तमेव  शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत |तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् || पद पदार्थ भारत – हे भरत कुल के वंशज!तम् एव – परमेश्वर का (मेरा)सर्वभावेन – सभी प्रकार सेशरणं गच्छ – अनुसरण करो;तत् प्रसादात् – उनकी कृपा सेपरां शान्तिं … Read more

१८.६१ – ईश्वर: सर्वभूतानाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ६० श्लोक ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन  तिष्ठति |भ्रामयन्  सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया || पद पदार्थ अर्जुन – हे अर्जुन!ईश्वर: – वासुदेव जो सभी को नियंत्रित करते हैंसर्व भूतानां हृद्देशे – सभी प्राणियों के हृदय में (जो ज्ञान का मूल है)यन्त्रारूढानि – शरीररूपी … Read more

१८.६० – स्वभावजेन कौन्तेय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ५९ श्लोक स्वभावजेन कौन्तेय निबद्ध: स्वेन  कर्मणा |कर्तुं  नेच्छसि  यन्मोहात्  करिष्यस्यावशोऽपि तत् || पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्ती पुत्र!स्वभावजेन – तुम्हारे पूर्व कर्मों के कारणस्वेन कर्मणा – वीरता जो तुम्हारा कर्म हैनिबद्ध: – बद्ध होनेके कारणअवश : – तुम्हारे … Read more

१८.५९ – यद्यहङ्कारम् आश्रित्य 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ५८ श्लोक यद्यहङ्कारम् आश्रित्य  न योत्स्य इति मन्यसे |मिथ्यैष  व्यवसायस्ते प्रकृतिस्त्वां नियोक्ष्यति || पद पदार्थ अहङ्कारम् आश्रित्य – यह मानते हुए कि “मैं स्वयं अच्छे और बुरे का निर्णय कर सकता हूँ” (मेरे आदेश का उल्लंघन करके)न योत्स्य इति – … Read more