१५.१३ – गामाविश्य च भूतानि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १२ श्लोक गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा |पुष्णामि चौषधी: सर्वा: सोमो भूत्वा रसात्मक: || पद पदार्थ अहम् – मैंगाम् आविश्य – पृथ्वी में व्याप्त होकरभूतानि – समस्त प्राणियोंओजसा – मेरी अजेय शक्ति सेधारयामि – धारण करता हूँरसात्मक: सोम: भूत्वा – अमृतमय … Read more

१५.१२ – यदादित्यगतं तेजो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक ११ श्लोक यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् |यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् || पद पदार्थ आदित्य गतं – सूर्य में विद्यमानयत् तेज: – उस तेजअखिलं जगत् – समस्त लोकों कोभासयते – प्रकाशित करता हैचन्द्रमसि यत् – चंद्रमा के उस तेज (जो लोकों … Read more

१५.११ – यतन्तो योगिनश्चैनं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १० श्लोक यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम् |यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्त्यचेतस: || पद पदार्थ यतन्त: योगिन: च – जो योगी (मेरे प्रति समर्पण करने के लिए कर्मयोग जैसे ) प्रयासों में लगे रहते हैं आत्मानि अवस्थितम् – अपने शरीर में स्थितएनं – इस … Read more

१५.१० – उत्क्रामन्तं स्थितं वाऽपि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक ९ श्लोक उत्क्रामन्तं स्थितं वाऽपि भुञ्जानं  वा गुणान्वितम् |विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुष : || पद पदार्थ गुणान्वितम् – (जैसा कि पहले बताया गया है) तीन गुणों से भरा हुआ शरीर के साथ होनाउत्क्रामन्तं – एक शरीर छोड़नास्थितं वाऽपि – (या) … Read more

१५.९ – श्रोत्रं चक्षुः स्पर्शनं च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक ८ श्लोक श्रोत्रं चक्षु: स्पर्शनं च रसनं घ्राणम्  एव च ​​|अधिष्ठाय मनश्चायं विषयान्  उपसेवते || पद पदार्थ अयम् – यह आत्माश्रोत्रं – कानचक्षु: – आँखेंस्पर्शनं च – शरीररसनं – जीभघ्राणम् एव च ​​- नाक, आदि ये पाँच इन्द्रियोंमन: च – … Read more

१५.८ – शरीरं यदवाप्नोति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक ७ श्लोक शरीरं यदवाप्नोति  यच्चाप्युत्क्रामतीश्वर : |गृहीत्वैतानि  संयाति  वायुर्गन्धानिवाशयात् || पद पदार्थ ईश्वर: – बंधी हुई आत्मा जो अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करती हैयत् शरीरं अवप्नोति – (पिछले शरीर को त्यागने के बाद) जिस नये शरीर में पहुँचती है (उस … Read more

१५.७ – ममैवांशो जीवलोके

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक ६ श्लोक ममैवांशो  जीवलोके जीवभूत: सनातन: |मन: षष्ठानीन्द्रियाणि  प्रकृतिस्थानि कर्षति || पद पदार्थ सनातन:- अनादि काल से विद्यमान (हमेशा के लिए)मम अंश: एव (सन् ) – जीवात्माओं में से एक, जिनमें मेरी विशेषताएँ हैंजीवभूत: – एक बद्ध जीव (बंधी हुई … Read more

१५.६ – न तद् भासयते सूर्यो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक ५ श्लोक न तद् भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावक: |यद् गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम  परमं मम || पद पदार्थ यद् गत्वा – जहाँ पहुँचने के बादन निवर्तन्ते – कोई वापसी नहीं है (जो वहाँ पहुँच गए ,उनके लिए संसार … Read more

१५.५ – निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक ४ श्लोक निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा  अध्यात्मनित्या  विनिवृत्तकामा: |द्वन्द्वैर्विमुक्ता:: सुखदु:खसंज्ञै: गच्छन्त्यमूढा: पदमव्ययं तत् || पद पदार्थ (इस प्रकार मेरी शरण में आकर)निर्मानमोहा: – देहात्माभिमान (शरीर को स्वयं मानना) के भ्रम से मुक्त होकर जित सङ्गदोषा: – तीन गुणों से युक्त सांसारिक वस्तुओं … Read more

१५.४ – तम् एव चाद्यं पुरुषं प्रपद्येद्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक ३ एवं ३.५ श्लोक तम् एव चाद्यं पुरुषं प्रपद्येद् यत: प्रवृत्ति: प्रसृता  पुराणी ।। पद पदार्थ आद्यं – हर वस्तु का आदि स्वामी होनायत: पुराणी प्रवृत्ति: प्रसृता – जिनसे, (आत्माओं का) तीन गुणों से सम्बन्दित विषयों के साथ संबंध अनादिकाल … Read more