११.१२ – दिवि सूर्यसहस्रस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता |
यदि भास्सदृशी सा स्याद् भासस्तस्य महात्मन: ||

पद पदार्थ

सूर्य सहस्रस्य भा: – हजारों सूर्यों की चमक
दिवि – आकाश में
युगपत – एक ही समय में
यदि उत्थिता भवेत् – यदि प्रकट हुआ
सा – वह चमक
तस्य महात्मन: भास: – उस महान भगवान की चमक की
सदृशी स्याद् – तुलनीय होगा

सरल अनुवाद

यदि आकाश में एक ही समय में हजारों सूर्य दिखाई दें, तो वह चमक उस महान भगवान की चमक की तुलनीय होगा |

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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