११.१३ – तत्रैकस्थं जगत् कृत्स्नम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

तत्रैकस्थं जगत् कृत्स्नं  प्रविभक्तमनेकधा |
अपश्यद्देव  देवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा   ||

पद पदार्थ

तत्र देव देवस्य शरीरे – ऐसे देवदेव के दिव्य रूप में
अनेकधा प्रविभक्तम् – अनेक प्रकार से विभाजित
कृत्स्नं जगत् – सभी संसारों
एकस्थं – एक ही स्थान में
पाण्डव-अर्जुन
तदा – तब
अपश्यद् – देखा

सरल अनुवाद

तब अर्जुन ने एक ही स्थान में ऐसे देवदेव के दिव्य रूप में कई प्रकार से विभाजित सभी संसारों को देखा |

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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