श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
अर्जुन उवाच
पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्घान् |
ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थं ऋषींश्च सर्वान् उरगांश्च दीप्तान् (दिव्यान्) ||
पद पदार्थ
अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहा
देव – हे प्रभु!
तव देवे – तुम्हारे स्वरूप में
सर्वान् देवान् पश्यामि – मैं सभी देवताओं को देख रहा हूँ
तथा – उसी प्रकार
(सर्वान्) भूत विशेष सङ्घान (पश्यामि) – मैं सभी प्राणियों का संग्रह देख रहा हूँ
(तथा – उसी प्रकार)
ब्रह्माणम् – ब्रह्मा
कमलासनस्थम् ईशं – शिव (रुद्र) जो कमल के फूल पर बैठे ब्रह्मा के प्रति आज्ञाकारी हैं
सर्वान ऋषीन् च – सभी ऋषियों
दीप्तान् (दिव्यान्) – दीप्तिमान
उरगान् च – सर्पों को
पश्यामि – देख रहा हूँ
सरल अनुवाद
अर्जुन ने कहा-हे प्रभु ! मैं तुम्हारे स्वरूप में सभी देवताओं को देख रहा हूँ; उसी प्रकार मैं समस्त प्राणियों का संग्रह देख रहा हूँ; उसी प्रकार, मैं, ब्रह्मा और कमल के फूल पर बैठे ब्रह्मा के प्रति आज्ञाकारी शिव (रुद्र); सभी ऋषियों और दीप्तिमान सर्पों को को देख रहा हूँ ।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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