१२.८ – मय्येव मन आधत्स्व

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १२

<< अध्याय १२ श्लोक ७

श्लोक

मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय।
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः।।

पद पदार्थ

(इस कारण से, जिसे पहले समझाया गया था)

मयि एव – केवल मुझमें
मन आधत्स्व – अपना हृदय/मन लगाओ
मयि – मुझमें
बुद्धिं निवेशय – (अंतिम लक्ष्य के रूप में) दृढ़ विश्वास रखो
अत ऊर्ध्वं एव – इस सिद्धांत को स्वीकार /पालन करने पर
मयि एव निवसिष्यसि – मुझमें ही निवास करोगे
न संशयः – इसमें कोई संदेह नहीं है

सरल अनुवाद

अपना हृदय/मन केवल मुझमें लगाओ, मुझमें (अंतिम लक्ष्य के रूप में) दृढ़ विश्वास रखो; इस सिद्धांत को स्वीकार /पालन करने पर, इसमें कोई संदेह नहीं है कि तुम मुझमें ही निवास करोगे।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय १२ श्लोक ९

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/12-8/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org