श्री भगवद्गीता का सारतत्व – अध्याय १२ (भक्ति योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना << अध्याय ११ गीता संग्रह के सोलहवें श्लोक में आळवन्दार स्वामीजी बारहवें अध्याय का सारांश समझाते हुए कहते हैं, “बारहवें अध्याय में, आत्म उपासना (स्वयं की आत्मा की खोज में संलग्न) की तुलना में भगवान के प्रति भक्ति योग की महानता, ऐसी … Read more

१२.२० – ये तु धर्म्यामृतम् इदम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १९ श्लोक ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते |श्रद्धधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रिया: || पद पदार्थ ये तु – वे जोधर्म्यामृतम् इदम् – यह भक्ति योग जो प्रापकम् (साधन) और प्राप्यम् (लक्ष्य) हैयथोक्तं – जैसा कि इस अध्याय के दूसरे श्लोक … Read more

१२.१९ – तुल्यनिन्दास्तुति: मौनी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १८ श्लोक तुल्यनिन्दास्तुति: मौनी सन्तुष्टो येन केनचित् |अनिकेत: स्थिरमति: भक्तिमान् मे प्रियो नर: || पद पदार्थ तुल्य निंदा स्तुति: – स्तुति और निंदा के प्रति समान होनामौनी – चुप रहना (जब अन्य लोग उसकी प्रशंसा या निंदा करते हैं)येन केनचित् … Read more

१२.१८ – समः शत्रौ च मित्रे च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १७ श्लोक समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानावमानयो: |शीतोष्णसुखदु:खेषु सम: सङ्गविवर्जित: || पद पदार्थ शत्रौ च मित्रे च सम: – शत्रु और मित्र (जो समीप हैं) के प्रति सम भाव रखनातथा – उसी प्रकारमानावमानयो: (सम:) – वैभव और अपमान … Read more

१२.१७ – यो न हृष्यति न द्वेष्टि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १६ श्लोक यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति |शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान् य: स मे प्रिय: || पद पदार्थ य: न हृष्यति – वह कर्म योग निष्ठ (कर्म योग अभ्यासी) जो (सुखद पहलुओं को देखकर) आनंदित नहीं होतान द्वेष्टि … Read more

१२.१६ – अनपेक्षः सुचि: दक्ष:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १५ श्लोक अनपेक्षः शुचि: दक्ष उदासीनो गतव्यथ : |सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्त: स मे प्रिय: || पद पदार्थ अनपेक्ष: – आत्मा के अलावा किसी अन्य वस्तु की इच्छा न करनाशुचि:- आहार शुद्धि (भोजन सेवन में शुद्धता) होनादक्ष: – एक विशेषज्ञ होना … Read more

१२.१५ – यस्मान् नोद्विजते लोको

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १४ श्लोक यस्मान् नोद्विजते लोको लोकान् नोद्विजते च य: |हर्षामर्षभयोद्वेगै: मुक्तो य: स च मे प्रिय: || पद पदार्थ यस्मात् – उस कर्म योग निष्ठ (कर्म योग अभ्यासी) से लोक: – यह संसारन उद्विजते – भय से कांपता नहींय: – … Read more

१२.१४ – सन्तुष्ट: सततं योगी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १३ श्लोक सन्तुष्ट: सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चय: |मय्यर्पित मनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स: मे प्रियः || पद पदार्थ सन्तुष्ट:- सन्तुष्ट रहनासततं योगी – जो सदैव स्वयं का ध्यान करता हैयतात्मा – नियन्त्रित मन वाला हैदृढ़ निश्चय: – दृढ़ ज्ञान/विश्वास होना (शास्त्र में … Read more

१२.१३ – अद्वेष्टा सर्वभूतानाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १२ श्लोक अद्वेष्टा सर्वभूतानां  मैत्र: करुण एव च ​​|निर्ममो निरहङ्कार: समदु:खसुख: क्षमी || पद पदार्थ सर्व भूतानाम् अद्वेष्टा – किसी भी प्राणी से घृणा नहीं करनामैत्र:- सभी प्राणियों के प्रति मित्रता से रहनाकरुण एव च – उनके प्रति दया दिखाना … Read more

१२.१२ – श्रेयो हि ज्ञानं अभ्यासात्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक ११ श्लोक श्रेयो हि ज्ञानम् अभ्यासात् ज्ञानात् ध्यानं विशिष्यते |ध्यानात् कर्मफलत्याग: त्यागाचछान्तिरनन्तरम् || पद पदार्थ अभ्यासात् – भगवान के प्रति (सच्चे प्रेम के बिना) भक्ति से श्रेष्ट ज्ञानं – वह ज्ञान जो प्रत्यक्ष दर्शन की सुविधा देता है (जो ऐसी … Read more