१२.७ – तेषामहं समुद्धर्ता

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १२

<< अध्याय १२ श्लोक ६

श्लोक

तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्।
भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्।।

पद पदार्थ

मयि आवेशित चेतसां तेषां – जो लोग अपना हृदय मुझमें केन्द्रित रखते हैं
अहं – (मेरी प्राप्ति में बाधक होने के कारण)
मृत्यु संसार सागरात् – इस भौतिक संसार से जो अज्ञान का सागर है और आत्म-विनाश की ओर ले जाता है
नचिरात् – शीघ्र ही
समुद्धर्ता भवामि – उनका उद्धार कर दूँगा

सरल अनुवाद

…और जो लोग अपना हृदय मुझमें केन्द्रित रखते हैं, मैं शीघ्र ही इस भौतिक संसार से उनका उद्धार कर दूँगा, जो अज्ञान का सागर है और आत्म-विनाश की ओर ले जाता है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय १२ श्लोक ८

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/12-7/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org