१८.३६ – अभ्यासाद्रमते यत्र

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

<< अध्याय १८ श्लोक ३५.५

श्लोक

अभ्यासाद्रमते यत्र दुःखान्तं च निगच्छति।।

पद पदार्थ

यत्र अभ्यासात् – जिस सुख की हमें बहुत दिनों से आदत है
रमते – अद्वितीय आनंद की प्राप्ति हो
दुःखान्तं च निगच्छति – इस संसार में सभी दुःखों का अंत हो

सरल अनुवाद

जिस सुख की हमें बहुत दिनों से आदत है, उस सुख के कारण अद्वितीय आनंद की प्राप्ति हो, तथा इस संसार में सभी दुःखों का अंत हो…

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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