२.२० – न जायते म्रियते वा कदाचिन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

<<अध्याय २ श्लोक १९

श्लोक

न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥

पद पदार्थ

अयं – आत्मा ( स्वयं )
कदाचित अपि – कभी नहीं
न जायते – न उत्पन्न होता है
न म्रियते वा – न नाश होता है
अयं – यह आत्मा
भूत्वा – उत्पन्न हुआ था ( कल्प के शुरुआत में – ब्रह्मा का दिन )
भूयः – फिर ( कल्प के अंत में )
न भविता ( इति ) न – उसका अंत नहीं होता
अयं – यह आत्मा
अज: – अजात
नित्यः – नित्य
शाश्वत: – अपरिवर्तनीय
पुराण: – प्राचीन एवं सदैव निर्मल
अतः – इसलिए
शरीरे हन्यमाने ( इति) – जब शरीर का नाश होता है
अयं – इस आत्मा
न हन्यते – का नाश नहीं होता

सरल अनुवाद

यह आत्मा न कभी उत्पन्न होता है न कभी विनाश होता है ; यह आत्मा न उत्पन्न हुआ था ( कल्प के शुरुआत में – ब्रह्मा का दिन ) न ( कल्प के अंत में ) उसका अंत होता है ; यह आत्मा अजात, नित्य, अपरिवर्तनीय , प्राचीन एवं सदैव निर्मल है ; इसलिए जब शरीर का नाश होता है तब इस आत्मा का नाश नहीं होता |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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