३.३० – मयि सर्वाणि कर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ३

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श्लोक

मयि सर्वाणि कर्माणि सन्नयस्याध्यात्मचेतसा ।
निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ॥

पद पदार्थ

आध्यात्म चेतसा – आत्मा के बारे में परिपूर्ण ज्ञान के साथ
सर्वाणि कर्माणि – सारे कर्तव्य
मयि – मुझमे ( मैं जो सबका अन्तर्यामी हूँ )
संन्यस्य – अच्छी तरह से अर्पित करके
निराशी: – कर्म फल के प्रति बिना कोई राग
निर्मम – बिना सोचे कि ” यह मेरा कर्म है “
भूत्वा – बनके
विगतज्वरः – प्राचीन काल से संग्रहित पापों से चिंतारहित
युध्यस्व – इस युद्ध में भाग लो

सरल अनुवाद

आत्मा के बारे में परिपूर्ण ज्ञान के साथ, सारे कर्तव्य को मुझमे ( मैं जो सबका अन्तर्यामी हूँ ) अच्छी तरह से अर्पित करके , कर्म फल के प्रति बिना कोई राग , बिना सोचे कि ” यह मेरा कर्म है ” ,प्राचीन काल से संग्रहित पापों से चिंतारहित बनके, इस युद्ध में भाग लो |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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