श्लोक
प्रकृतेर्गुण सम्मूढ़ाः सज्जन्ते गुण कर्मसु ।
तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत् ॥
पद पदार्थ
प्रकृते: – मूल प्रकृति ( जो शरीर में परिवर्तन हो चुका हो )
गुण सम्मूढ़ाः – जो लोग तीन गुणों ( सत्व , रजस और तमस ) से प्रभावित हैं और आत्मा के बारे में अस्पष्ट और विभ्रांत हैं
गुण कर्मसु – इन तीन गुणों से प्रभावित कर्म
सज्जन्ते – इन तीन गुणों से बद्ध रहते हैं ( न कि आत्मा से जुड़ा, जो इन तीन गुणों से स्वतंत्र है )
मंदान् – मूर्ख
अकृत्स्नविद: – जो आत्मा के बारे में न पहचाने
तान् – उनको
कृत्स्नवित् – जो आत्मा के बारे में ठीक तरह से जानते हैं
न विचालयेत् – कर्म योग को त्याग देने में भड़काना नहीं चाहिए
सरल अनुवाद
जो लोग आत्मा के बारे में अस्पष्ट और विभ्रांत हैं और मूल प्रकृति ( जो शरीर में परिवर्तन हो चुका हो ) के इन तीन गुणों ( सत्व , रजस और तमस ) से प्रभावित हैं , वो लोग हमेशा इन तीन गुणों से प्रभावित कर्म से बद्ध रहते हैं ( न कि आत्मा से , जो इन तीन गुणों से स्वतंत्र है ) | जो आत्मा के बारे में ठीक तरह से जानते हैं , वो आत्मा के बारे में न पहचाने इन मूर्ख लोगों को कर्म योग को त्याग देने में भड़काना नहीं चाहिए |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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