श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः ।
श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः ॥
पद पदार्थ
ये मानवाः – वो गुण संपन्न लोग
इदं – इस
मे मतं – मेरे सिद्धांत
नित्यं अनुतिष्ठन्ति – हमेशा अभ्यास करते हैं
ये श्रद्धावन्ता: – (अभ्यास न करे फिर भी) कम से कम भरोसेमंद हो
ये अनसूयन्त: – (भरोसेमंद न हो फिर भी ) कम से कम दूसरों के प्रति ईर्ष्यालु न हो
ते अपि – वो तीन प्रकार के लोग
कर्मभिः मुच्यन्ते – सारे पुण्य ( पवित्र ) और पाप ( दुराचार ) कर्मों से विमुक्त हो जाते हैं
सरल अनुवाद
वो गुण संपन्न लोग जो हमेशा मेरे सिद्धांत का अभ्यास करते हैं , वो लोग जो (अभ्यास न करे फिर भी) कम से कम भरोसेमंद हो , वो लोग जो (भरोसेमंद न हो फिर भी ) कम से कम दूसरों के प्रति ईर्ष्यालु न हो , वो तीन प्रकार के लोग सारे पुण्य ( पवित्र ) और पाप ( दुराचार ) कर्मों से विमुक्त हो जाते हैं |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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