श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा।
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च॥
पद पदार्थ
कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र !
दुष्पूरेण – असंभव विषयों को प्राप्त करने की कामना करना और बिना कोई तृप्ति
अनलेन – ( उन पदार्थों में भी जिनको प्राप्त कर सकते हैं )
नित्यवैरिणा – हमेशा ( यतार्थ ज्ञान का ) शत्रु है
एतेन कामरूपेण – इस वासना से
ज्ञानिना: ज्ञानं – इस आत्मा के प्रति ज्ञान , जो स्वाभाविक रूप से ज्ञानी है
आवृतं – व्याप्त है
सरल अनुवाद
हे कुन्तीपुत्र ! आत्मा के प्रति ज्ञान , जो स्वाभाविक रूप से ज्ञानी है, इस वासना से व्याप्त है जो असंभव विषयों को प्राप्त करने की कामना करता है और बिना कोई तृप्ति ( उन पदार्थों में भी जिनको प्राप्त कर सकते हैं ) , लौकिक विषयों का ये वासना , हमेशा ( यतार्थ ज्ञान का ) शत्रु है |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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