श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि ।
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः ॥
पद पदार्थ
योग युक्तात्मा – जिसका मन योग अभ्यास में लगा है
सर्वत्र – सभी आत्माओं में (आत्मा जो विषयों से संबंधित नहीं है)
समदर्शन: – समान रूप की स्थिति को देखना (ज्ञान, आनंद आदि को पहचान के रूप में रखना)
सर्व भूतस्थं आत्मानं– स्वयं का स्वभाव सभी आत्माओं के समान है
आत्मनि च सर्व भूतानि – सभी आत्माएं के स्वभाव स्वयं के समान हैं
इक्षते – देखता है
सरल अनुवाद
जिसका मन योगाभ्यास में लगा है, वह सभी आत्माओं (आत्मा जिसका विषयों से कोई संबंध नहीं है) में समान रूप की स्थिति (ज्ञान, आनंद आदि) को देखता है, वह स्वयं को स्वाभाविक रूप से सभी आत्माओं के समान मानता है और सभी आत्माओं को स्वयं के समान स्वभाव वाले के रूप में देखता है ।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी
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