श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति |
एवं त्रयीधर्मम् अनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते ||
पद पदार्थ
ते – वे
विशालं – विस्तृत
तं स्वर्गलोकं – स्वर्ग लोक के सुखों
भुक्त्वा – आनंद
पुण्ये क्षीणे – जो पुण्य संचित थे, उन्हें समाप्त करने के बाद ( ऐसे आनंद लेने के कारण )
मर्त्यलोकं विशन्ति – ( फिर से ) इस भौतिक संसार में प्रवेश करते हैं
एवं – इस प्रकार
त्रयीधर्मम् अनु प्रपन्ना – ( वेदांत ज्ञान के बिना ) , वेदों के पूर्वभाग (अनुष्ठान का पहला भाग) का अभ्यास करते हुए
कामकामा – इच्छित स्वर्ग ( जिनका उनमें उल्लेख है ) आदि में इच्छाएँ रखते हुए
गतागतं लभन्ते – वे (तुच्छ, अस्थायी ) स्वर्ग आदि प्राप्त करते हैं और बार-बार (भौतिक संसार में ) लौट आते हैं
सरल अनुवाद
वे स्वर्ग लोक के विस्तृत सुखों का आनंद लेते हैं , और जो पुण्य संचित थे, उन्हें समाप्त करने के बाद ( ऐसे आनंद लेने के कारण ) ( फिर से ) इस भौतिक संसार में प्रवेश करते हैं | इस प्रकार ( वेदांत ज्ञान के बिना ) , वेदों के पूर्वभाग (अनुष्ठान का पहला भाग) का अभ्यास करते हुए, इच्छित स्वर्ग ( जिनका उनमें उल्लेख है ) आदि में इच्छाएँ रखते हुए , वे (तुच्छ, अस्थायी ) स्वर्ग आदि प्राप्त करते हैं और बार-बार (भौतिक संसार में ) लौट आते हैं |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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