श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥
पद पदार्थ
अयं – आत्मा ( स्वयं )
कदाचित अपि – कभी नहीं
न जायते – न उत्पन्न होता है
न म्रियते वा – न नाश होता है
अयं – यह आत्मा
भूत्वा – उत्पन्न हुआ था ( कल्प के शुरुआत में – ब्रह्मा का दिन )
भूयः – फिर ( कल्प के अंत में )
न भविता ( इति ) न – उसका अंत नहीं होता
अयं – यह आत्मा
अज: – अजात
नित्यः – नित्य
शाश्वत: – अपरिवर्तनीय
पुराण: – प्राचीन एवं सदैव निर्मल
अतः – इसलिए
शरीरे हन्यमाने ( इति) – जब शरीर का नाश होता है
अयं – इस आत्मा
न हन्यते – का नाश नहीं होता
सरल अनुवाद
यह आत्मा न कभी उत्पन्न होता है न कभी विनाश होता है ; यह आत्मा न उत्पन्न हुआ था ( कल्प के शुरुआत में – ब्रह्मा का दिन ) न ( कल्प के अंत में ) उसका अंत होता है ; यह आत्मा अजात, नित्य, अपरिवर्तनीय , प्राचीन एवं सदैव निर्मल है ; इसलिए जब शरीर का नाश होता है तब इस आत्मा का नाश नहीं होता |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/2-20/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org