३.३३.५ – इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ३

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श्लोक

इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ

पद पदार्थ

इन्द्रियस्य – ज्ञानेन्द्रिय ( ज्ञान के इन्द्रियों – जो ज्ञान इकट्ठा करने में लगे रहते हैं जैसे कान )
इन्द्रियस्य – कर्मेन्द्रिय ( कर्म के इन्द्रियों – जो कर्म करने में लगे रहते हैं जैसे मुख )
अर्थे – इन इन्द्रियों के वस्तु ( शब्द और वाक् ) पर
रागद्वेषौ – प्रेम और क्रोध
व्यवस्थितौ – दृढ़ और अवर्जनीय ढंग से उपस्थित हैं

सरल अनुवाद

प्रेम और क्रोध , ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों के वस्तु ( शब्द और वाक् ) पर दृढ़ और अवर्जनीय ढंग से उपस्थित हैं |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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