३.३९ – आवृतं ज्ञानमेतेन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ३

<< अध्याय ३ श्लोक ३८

श्लोक

आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा।
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च॥

पद पदार्थ

कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र !
दुष्पूरेण – असंभव विषयों को प्राप्त करने की कामना करना और बिना कोई तृप्ति
अनलेन – ( उन पदार्थों में भी जिनको प्राप्त कर सकते हैं )
नित्यवैरिणा – हमेशा ( यतार्थ ज्ञान का ) शत्रु है
एतेन कामरूपेण – इस वासना से
ज्ञानिना: ज्ञानं – इस आत्मा के प्रति ज्ञान , जो स्वाभाविक रूप से ज्ञानी है
आवृतं – व्याप्त है

सरल अनुवाद

हे कुन्तीपुत्र ! आत्मा के प्रति ज्ञान , जो स्वाभाविक रूप से ज्ञानी है, इस वासना से व्याप्त है जो असंभव विषयों को प्राप्त करने की कामना करता है और बिना कोई तृप्ति ( उन पदार्थों में भी जिनको प्राप्त कर सकते हैं ) , लौकिक विषयों का ये वासना , हमेशा ( यतार्थ ज्ञान का ) शत्रु है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय ३ श्लोक ४०

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/3-39/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org