४.२५.५ – श्रोत्रादीनीन्द्रियाणि अन्ये

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ४

<< अध्याय ४ श्लोक २५

श्लोक

श्रोत्रादीनीन्द्रियाणि अन्ये  सम्यमाग्निषु जुह्वति ।

पद पदार्थ

अन्ये – कुछ अन्य कर्मयोगी
श्रोत्रादीनी इन्द्रियाणि – कान जैसी संवेदी  अंग
सम्यमाग्निषु – इंद्रियों को नियंत्रित करने की अग्नि में
जुह्वति – उन्हें यज्ञ में संलग्न करना

सरल अनुवाद

कुछ अन्य कर्म योगी इंद्रियों को संयमित करने के यज्ञ में कान जैसी ज्ञानेंद्रियों को संलग्न करतें हैं।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

>> अध्याय ४ श्लोक २६

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/4-25.5

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org