श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रिय: |
युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चन: ||
पद पदार्थ
ज्ञान विज्ञान तृप्तात्मा – ज्ञान और महा ज्ञान से तृप्त मन के साथ
कूटस्थ: – शुद्ध आत्मा पर दृढ़ता से स्थापित
विजितेन्द्रिय: – ज्ञानेन्द्रियों पर विजय प्राप्त करके
सम लोष्टाश्म काञ्चन: – मिट्टी, पत्थर और सोने के एक खंड के प्रति समानता
योगी – कर्म योगी
युक्त: इति उच्यते – आत्मानुभूति की इस योग अभ्यास के लिए योग्य माना जाता है
सरल अनुवाद
वह कर्म योगी जिसका मन ज्ञान और महा ज्ञान से तृप्त है , जो शुद्ध आत्मा पर दृढ़ता से स्थापित है , जो ज्ञानेन्द्रियों पर विजय प्राप्त किया है , जो मिट्टी, पत्थर और सोने के एक खंड के प्रति समान रूप से प्रवृत्त है, वह आत्मानुभूति की इस योग अभ्यास के लिए योग्य माना जाता है |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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