११.२ – भवाप्ययौ हि भूतानाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो  मया |
त्वत्त : कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम् |

पद पदार्थ

कमल पत्राक्ष – हे कमल के पंखुड़ी जैसी आँखों वाले भगवान!
त्वत्त – तुमसे (जो परमात्मा हैं) (अस्तित्व में आना)
भूतानां – सभी पहलुएँ
भवाप्ययौ- सृजन और प्रलय
विस्तरश :- विस्तृत रूप से
मया – मेरे द्वारा
श्रुतौ हि – सुना नहीं गया?
अव्ययम् – असीमित
माहात्म्यम् अपि च – तुम्हारी सारी बहुमुखी महिमा सुनी है

सरल अनुवाद

हे कमल-के पंखुड़ी समान नेत्रों वाले स्वामी! क्या सृष्टि और प्रलय तथा तुम्हारी समस्त बहुमुखी महानता को मैंने प्रत्यक्ष एवं विस्तृत रूप से तुमसे नहीं सुना ?

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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