११.३० – लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्तात्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

<< अध्याय ११ श्लोक २९

श्लोक

लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ताल्लोकान् समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः।
तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं भासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विष्णो।।

पद पदार्थ

विष्णो – हे विष्णु!
समग्रान् लोकान् – सभी योद्धाओं
ज्वलद्भिः वदनै: – उग्र मुखों
ग्रसमानः – भस्म
समन्तात् लेलिह्यसे – चारों ओर से बार-बार चाट रहे हो
त्व – तुम्हारे
उग्र भास – प्रचण्ड किरणों
तेजोभि: – का तेज
समग्रं जगत् – सम्पूर्ण जगत
आपूर्य – भरकर
प्रतपन्ति – जला रहा है

सरल अनुवाद

हे विष्णु! तुम इन सभी योद्धाओं को तुम्हारे उग्र मुखों से भस्म कर रहे हो और उन्हें चारों ओर से बार-बार चाट रहे हो ; तुम्हारी प्रचण्ड किरणों का तेज सम्पूर्ण जगत को भरकर जला रहा है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय ११ श्लोक ३१

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/11-30/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org