११.५३ – नाहं वेदै: न तपसा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया।
शक्य एवंविधो द्रष्टुं दृष्टवानसि मां यथा।।

पद पदार्थ

मां यथा दृष्टवान् असि – जिस प्रकार तुमने मुझे देखा है
एवं विध – उस प्रकार
अहम् – मैं
वेदै: द्रष्टुं न शक्य: – वेदों के द्वारा नहीं देखा जा सकता
तपसा द्रष्टुं न शक्य: – तपस्याओं के द्वारा नहीं देखा जा सकता
दानेन द्रष्टुं न शक्य: – दानों के द्वारा नहीं देखा जा सकता
इज्यया द्रष्टुं न शक्य: – यज्ञों के द्वारा नहीं देखा जा सकता

सरल अनुवाद

मुझे वेदों, तपस्याओं, दानों और यज्ञों के द्वारा उस प्रकार नहीं देखा जा सकता जिस प्रकार तुमने मुझे देखा है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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