१३.३३ – यथा प्रकाशयत्येकः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १३

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श्लोक

यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः।
क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत।।

पद पदार्थ

भारत – हे भरतवंशी!
एक: रविः – सूर्य
इमं कृत्स्नं लोकं – सम्पूर्ण जगत
यथा प्रकाशयति – जैसे (अपने प्रकाश से) प्रकाशित करता है
तथा – वैसे ही
क्षेत्री – शरीरधारी जीवात्मा
क्षेत्रं – (अपने) शरीर को
कृत्स्नं – भीतर से बाहर तक, पैर से सिर तक
प्रकाशयति – (अपने ज्ञान से ) प्रकाशित करता है

सरल अनुवाद

हे भरतवंशी! जैसे सूर्य अपने प्रकाश से सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करता है, वैसे ही शरीरधारी जीवात्मा अपने शरीर को भीतर से बाहर तक, पैर से सिर तक प्रकाशित करता है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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