श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा |
पुष्णामि चौषधी: सर्वा: सोमो भूत्वा रसात्मक: ||
पद पदार्थ
अहम् – मैं
गाम् आविश्य – पृथ्वी में व्याप्त होकर
भूतानि – समस्त प्राणियों
ओजसा – मेरी अजेय शक्ति से
धारयामि – धारण करता हूँ
रसात्मक: सोम: भूत्वा – अमृतमय चन्द्रमा बनकर
सर्वा: ओषधी: – समस्त वनस्पतियों का
पुष्णामि – पोषण करता हूँ
सरल अनुवाद
मैं पृथ्वी में व्याप्त होकर मेरी अजेय शक्ति से समस्त प्राणियों को धारण करता हूँ; मैं अमृतमय चन्द्रमा बनकर समस्त वनस्पतियों का पोषण करता हूँ।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/15-13/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org