१६.९ – एतां दृष्टिम् अवष्टभ्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १६

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श्लोक

एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः।
प्रभवन्त्युग्रकर्माणः क्षयाय जगतोऽशुभा:।।

पद पदार्थ

(राक्षसी लोग)
एतां दृष्टिं – इस कुटिल दृष्टि
अवष्टभ्य – को धारण करके
नष्टात्मान: – आत्मा (जो शरीर से भिन्न है) को न देखकर
अल्प बुद्धयः – क्षुद्रबुद्धि वाले होकर (जो शरीर ज्ञेय है और आत्मा जो ज्ञाता है, उनमें भेद न कर पाने वाले)
उग्र कर्माणः – बुरे कार्यों में लगे हुए (जो सभी को हानि पहुँचाते हैं)
अशुभा: – अशुभ होकर
क्षयाय प्रभवन्ति – जगत के नाश का कारण बनते हैं

सरल अनुवाद

इस कुटिल दृष्टि को धारण करके, आत्मा (जो शरीर से भिन्न है) को न देखकर, क्षुद्रबुद्धि वाले होकर (जो शरीर ज्ञेय है और आत्मा जो ज्ञाता है, उनमें भेद न कर पाने वाले), बुरे कार्यों में लगे हुए (जो सभी को हानि पहुँचाते हैं) और अशुभ होकर राक्षसी लोग जगत के नाश का कारण बनते हैं।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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