१७.१३ – विधिहीनम् असृष्टान्नम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १७

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श्लोक

विधिहीनम् असृष्टान्नं  मन्त्रहीनम् अदक्षिणम् |
श्रद्धाविरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते ||

पद पदार्थ

विधिहीनम् – (ब्राह्मणों की) अनुमति से रहित
असृष्टान्नं – अधर्म से अर्जित सामग्री से युक्त
मंत्रहीनम् – उचित मंत्रों से रहित
अदक्षिणम् – दक्षिणा से (ब्राह्मण आदि को) रहित
श्रद्धा विरहितं – श्रद्धा के बिना किया गया
यज्ञं – यज्ञ
तामसं परिचक्षते – (शास्त्र के ज्ञाताओं द्वारा) तामस यज्ञ (अज्ञान में यज्ञ) घोषित किया गया है

सरल अनुवाद

जो यज्ञ (ब्राह्मणों की) अनुमति से रहित, अधर्म से अर्जित सामग्री से युक्त, उचित मंत्रों से रहित, दक्षिणा से (ब्राह्मण आदि को) रहित तथा श्रद्धा के बिना किया गया हो, वह यज्ञ (शास्त्र के ज्ञाताओं द्वारा)तामस यज्ञ (अज्ञान में यज्ञ) घोषित किया गया है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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