శ్రీ భగవత్ గీతా సారం – అధ్యాయం 17 (శ్రద్ధత్రయ విభాగ యోగం)

శ్రీః  శ్రీమతే శఠకోపాయ నమః  శ్రీమతే రామానుజాయ నమః  శ్రీమత్ వరవరమునయే నమః శ్రీ భగవద్ గీతా సారం << అధ్యాయం 16 గీతార్థ సంగ్రహం లోని 21వ శ్లోకం లో, ఆళవందార్లు పదిహేడవ అధ్యాయం యొక్క సారాంశం వివరిస్తూ “పదహేడవ అధ్యాయం లో, శాస్త్ర విధితం కాని కర్మలు అన్ని అసురులకు(క్రూరమైన వారికి) (కావున పనికిరానివి), శాస్త్ర విదితమైనవి త్రిగుణాత్మకమైనవి (సత్త్వ, రజస్, తమస్) కావున మూడు వేరు విధానాలు కలిగి ఉంటాయి అని. శాస్త్ర … Read more

१७.२८ – अश्रद्धया हुतं दत्तं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक २७ श्लोक अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत्।असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह।। पद पदार्थ पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!अश्रद्धया कृतं – श्रद्धा के बिना किया जाता हैयत् – वहहुतं – यज्ञदत्तं – दानयत् तप: च तप्तम् – तप … Read more

१७.२७ – यज्ञे तपसि दाने च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक २६ श्लोक यज्ञे तपसि दाने च स्थितिः सदिति चोच्यते।कर्म चैव तदर्थीयं सदित्येवाभिधीयते।। पद पदार्थ यज्ञे – यज्ञ मेंतपसि – तपस्या मेंदाने च – दान मेंस्थितिः च – [वे त्रैवर्णिक – ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य] दृढ़ रहना हीसत् इति उच्यते – … Read more

१७.२६ – सद्भावे साधुभावे च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक २५ श्लोक सद्भावे साधुभावे च सदित्येतत्प्रयुज्यते।प्रशस्ते कर्मणि तथा सच्छब्दः पार्थ युज्यते।। पद पदार्थ पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!सत् इति एतत् – सत् शब्दसद्भावे – “एक वस्तु जो है” का संकेत देनासाधुभावे च – और “एक अच्छी वस्तु ” का संकेत देनाप्रयुज्यते … Read more

१७.२५ – तदिति अनभिसन्धाय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक २४ श्लोक तदित्यनभिसन्धाय फलं यज्ञतपःक्रियाः।दानक्रियाश्च विविधाः क्रियन्ते मोक्षकाङ्क्षिभि:।। पद पदार्थ मोक्षकाङ्क्षिभि: – मोक्ष की इच्छा रखने वालों [ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य] के द्वाराविविधाः – कई प्रकारयज्ञ तपः क्रियाः – यज्ञ और तपस्यादान क्रिया: च – और दानतत् इति – “तत्” (जो … Read more

१७.२४ – तस्मादोम् इत्युदाहृत्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक २३ श्लोक तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपःक्रियाः।प्रवर्तन्ते विधानोक्ताः सततं ब्रह्मवादिनाम्।। पद पदार्थ तस्मात् – चूँकि इन तीन शब्दों सहित वैधिक कर्म (इस प्रकार, मेरे द्वारा) निर्मित किये गये हैंब्रह्मवादिनाम् – उनके [ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों] द्वारा किये जाते हैं जो वेदों का पाठ … Read more

१७.२३ – ॐ तत् सदिति निर्देशो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक २२ श्लोक ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः।ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा।। पद पदार्थ ॐ तत् सत् इति – “ॐ तत् सत्”त्रिविधः निर्देश: – तीन शब्दब्राह्मण: स्मृतः – वैधिक कर्म [अनुष्ठान] से युक्त कहे गए हैंतेन – इन तीन शब्दों से … Read more

१७.२२ – अदेशकाले यद्दानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक २१ श्लोक अदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्च दीयते।असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम्।। पद पदार्थ अदेशकाले – गलत स्थान और समय परअपात्रेभ्य: च – गलत पात्र कोअसत्कृतं – पात्र का अनादर करते हुएअवज्ञातं – पात्र का अपमान करते हुएयद्दानं दीयते – जो दान किया जाता हैतत् – … Read more

१७.२१ – यत् तु प्रत्युपकारार्थं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक २० श्लोक यत्तु प्रत्युपकारार्थं फलमुद्दिश्य वा पुनः।दीयते च परिक्लिष्टं तद्दानं राजसमुदाहृतम्।। पद पदार्थ प्रत्युपकारार्थं – बदले में उपकार की आशा करते हुएफलम् उद्दिश्य वा पुनः – या पुरस्कार (परलोक में) की आशा करते हुएपरिक्लिष्टं – दुःखी मन सेयत्तु दीयते – … Read more

१७.२० – दातव्यम् इति यद्दानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १९ श्लोक दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्।। पद पदार्थ अनुपकारिणे – जिससे बदले में कुछ मिलने की आशा न की जाएदातव्यम् इति – केवल दान देने के उद्देश्य से दान दिया जाता हैदेशे – उचित … Read more