श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्वयपाश्रय: |
मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम् ||
पद पदार्थ
सर्व कर्माणि अपि – सभी काम्य कर्मों (परिणाम की आशा के साथ किए गए कार्य)
मद्वयपाश्रय: – कर्तापन आदि मेरे प्रति समर्पित करना
सदा कुर्वाण: – जो सदैव कर्म करता है
मत्प्रसादात् – मेरी कृपा से
शाश्वतं – सदा उपस्थित
अव्ययम् – अविनाशी
पदम् – मुझे, जो लक्ष्य हूँ
अवाप्नोति – प्राप्त करता है
सरल अनुवाद
जो मनुष्य सदैव सभी काम्य कर्मों (फल की आशा के साथ किए गए कार्य)के कर्तापन आदि मेरे प्रति समर्पित करता है, वह मेरी कृपा से मुझे, जो सदा उपस्थित, अविनाशी लक्ष्य हूँ प्राप्त करता है।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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